मग चिंतन अलंकरोति अंगानाम रंगानाम् विविधै शुभै: ! अल्हादयति हृदयँ होलिकोत्सव पावने !! होली-(क) शब्द का अर्थ- इसका मूल रूप हुलहुली (शुभ अवसर की ध्वनि) है जो ऋ-ऋ-लृ का लगातार उच्चारण है। आकाश के ५ मण्डल हैं, जिनमें पूर्ण विश्व तथा ब्रह्माण्ड हमारे अनुभव से परे है। सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी का अनुभव होता है, जो शिव के ३ नेत्र हैं। इनके चिह्न ५ मूल स्वर हैं-अ, इ, उ, ऋ, लृ। शिव के ३ नेत्रों का स्मरण ही होली है। अग्निर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्र सूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्विवृताश्च वेदाः। (मुण्डक उपनिषद्, २/१/४) चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय, तस्मै वकाराय नमः शिवाय* (शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र) विजय के लिये उलुलय (होली) का उच्चारण होता है- उद्धर्षतां मघवन् वाजिनान्युद वीराणां जयतामेतु घोषः। *पृथग् घोषा उलुलयः एतुमन्त उदीरताम्। (अथर्व ३/१९/६) (ख) अग्नि का पुनः ज्वलन-सम्वत्सर रूपी अग्नि वर्ष के अन्त में खर्च हो जाती है, अतः उसे पुनः जलाते हैं, जो सम्वत्-दहन है- अग्निर्जागार तमृचः कामयन्ते, अग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति। अग्निर्जागार तमयं सोम आह-तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः। (ऋक् ५/४...