Skip to main content

पितृपक्ष : क्या करें क्या नहीं करें ? dos and don’ts during Pitripaksha - by Anuj Mishra

संक्षिप्त ब्याख्या : 

तर्पण : देवताओं, ऋषियों एवं पितरों को जल दान करके तृप्त करने की क्रिया। 

श्राद्ध : श्र्द्धार्थमिदम श्राद्धम। पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहते हैं।

पिंड : पितरों को खिलने वाला प्रसाद |


पितृपक्ष का कालखंड : आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक (१५ दिनों का ) | इस कालखंड में पितर हमसे मिलने पृथ्वीलोक में आते हैं और हमारे साथ ही रहते हैं | इसीलिए कोई नया काम की सुरुवात नहीं करते हैं क्यों की उस्समय हम अपना पूरा समय अपने पितर के साथ बिताते हैं |


तर्पण /श्राद्ध कब करें : पितृपक्ष में प्रतयेक दिन और जिसदिन पिता का देहांत का तिथि है उसदिन ब्राह्मण भोज या फिर गायों को घास खिलाएं  | अगर पिता के देहांत का  तिथि नहीं पता हो तो अमावस्या के दिन करें |


तर्पण /श्राद्ध कहाँ करें : अपने घर में या फिर धर्मस्थल में | इसको दिन में ही करना है |


तर्पण क्यों करें? हमारे पितर पितृपक्ष में हमारे साथ ही होते हैं तथा वे हमसे श्रद्धा की उम्मीद रहते हैं | अगर हम उनका तर्पण नहीं करते हैं तो वे उदास होकर चले जाते हैं जिससे पितृदोष भी लगता है | 


तर्पण /श्राद्ध कैसे करें: 

१. हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें एक एक करके आमंत्रित करें 

‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’

२. जल में दूध, तिल, जव मिलाकर काफी मात्रा में रखें क्यों तर्पण बहुत बार करना होता है | 

३. अपने पुरोहित से भी परामर्श लें |


तर्पण /श्राद्ध करने का अनुक्रम (Sequence)

१.  पहला तर्पण पिता को दें  : अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः बोलकर ३ बार जल दें |

२. दूसरा तर्पण माता को दें : अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी  वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः  बोलकर पूर्व दिशा में १६ बार, उत्तर दिशा में ७ बार और दक्षिण दिशा में १४ बार जल दें | मातृ ऋण पितृ ऋण से ज्यादा होता है इसीलिए तर्पण भी ज्यादा करते हैं |


३. तीसरा तर्पण पितामह को दें  : अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह  (पितामह  का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः बोलकर ३ बार जल दें |

४  चौथा तर्पण पितामा को दें : अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मन्पितामा (पितामा का नाम) देवी  वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः  बोलकर पूर्व दिशा में १६ बार, उत्तर दिशा में ७ बार और दक्षिण दिशा में १४ बार जल दें | मातृ ऋण पितृ ऋण से ज्यादा होता है इसीलिए तर्पण भी ज्यादा करते हैं |


५. पांचवां तर्पण प्रपितामह को दें  : अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्प्रपितामह (प्रपितामह   का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः  बोलकर ३ बार जल दें |

६ . छठा तर्पण प्रपितामा को दें : अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मन्प्रपितामा (प्रपितामा का नाम) देवी  वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः  बोलकर पूर्व दिशा में १६ बार, उत्तर दिशा में ७ बार और दक्षिण दिशा में १४ बार जल दें | मातृ ऋण पितृ ऋण से ज्यादा होता है इसीलिए तर्पण भी ज्यादा करते हैं |


७. बाकि लोग जो श्राद्ध के अधिकारी हैं : अगर आपके ही गोत्र से हैं और उनका नाम पता है तो उनके नाम से ही करें |  अगर गोत्र और नाम यद् नहीं है तो बिना नाम के ही करें | वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः ३ बार जल दें |


NOTE: अगर मन्त्र नहीं पढ़ सकते तो बिना मन्त्र के ही भाव के साथ कर सकते हैं |

पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।।



विश्लेषणकर्ता - अनुज मिश्रा We love your comments and suggestions. Please visit our website for travel blogs and other related topics. Anuj Mishra https://www.drifterbaba.com/ Whatsapp / Call: +91 9900144384 #SanatanDharma #Shradh #PitriPaksha


Comments